अपनी ही आग में सब जल जायेंगे यक़ीनन

अपनी ही आग में सब जल जायेंगे यक़ीनन जंगल के पेड़ हैं ये टकरायेंगे यक़ीनन   साज़िश में हैं जो शामिल, उन आईनों से कह दो सूरज को क़ैद करके, पछताएंगे यक़ीनन   बिखरे तो आँधियों से गुल मुस्कुरा के बोले इक रोज़ फिर से गुलशन महकाएंगे यक़ीनन